इजरायल-हमास समझौता — शांति की ओर पहला कदम या क्षणिक राहत?
गाजा की जर्जर धरती पर पहली बार वर्षों बाद शांति की एक हल्की आहट सुनाई दी है। इजरायल और हमास के बीच हाल में हुए युद्धविराम समझौते ने दुनिया भर में उम्मीद और संशय दोनों को जन्म दिया है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा इस समझौते को “ऐतिहासिक उपलब्धि” कहे जाने और उनके मध्य पूर्व दौरे की घोषणा ने इसे और अधिक सुर्खियों में ला दिया है।
लेकिन सवाल वही पुराना है — क्या यह वास्तव में स्थायी शांति की दिशा में पहला ठोस कदम है, या फिर केवल एक क्षणिक राजनीतिक राहत?
1. समझौते की रूपरेखा: राहत की शुरुआत
समझौते के प्रथम चरण में तीन प्रमुख बिंदुओं पर सहमति बनी है —
- गाजा और दक्षिणी इजरायल में पूर्ण युद्धविराम,
- बंधकों और कैदियों की अदला-बदली,
- और इजरायली सेना की गाजा से चरणबद्ध वापसी।
इन प्रावधानों ने तत्काल मानवीय राहत की उम्मीद जगाई है।
गाजा, जो पिछले दो वर्षों से लगातार बमबारी, नाकेबंदी और विस्थापन का सामना कर रहा था, अब पुनर्वास और पुनर्निर्माण की उम्मीद देख रहा है। बंधकों की रिहाई का पहलू विशेष रूप से भावनात्मक और राजनीतिक दोनों दृष्टियों से महत्वपूर्ण है — क्योंकि यह दोनों पक्षों के बीच विश्वास की बहाली का संकेत देता है।
2. इतिहास के संदर्भ में: बार-बार टूटी उम्मीदें
फिलिस्तीन-इजरायल संघर्ष का इतिहास बताता है कि युद्धविराम अक्सर टिकाऊ नहीं रहे हैं।
1993 के ओस्लो समझौते, 2005 में गाजा से इजरायल की वापसी, या 2021 के मिस्र-प्रायोजित युद्धविराम — सभी ने शांति की झलक तो दिखाई, पर स्थायित्व नहीं ला सके।
इसका कारण स्पष्ट है — विश्वास की कमी, चरमपंथी विचारधाराओं की जकड़, और राजनीतिक लाभ-हानि की गणनाएँ।
आज भी वही दुविधा है।
हमास के लिए यह समझौता राजनीतिक अस्तित्व बचाने की रणनीति भी हो सकता है, जबकि इजरायल इसे अपने नागरिकों की सुरक्षा के लिहाज से सैन्य ठहराव का अवसर मान रहा है।
3. प्रमुख बाधाएँ: भू-राजनीति और अविश्वास का जाल
इस समझौते को लागू करने में कई संरचनात्मक चुनौतियाँ हैं —
- हमास का नियंत्रण: गाजा में हमास की सत्ता अब भी हथियारों पर आधारित है, न कि लोकतांत्रिक प्रतिनिधित्व पर।
- इजरायल की सुरक्षा चिंता: इजरायल यह सुनिश्चित करना चाहता है कि गाजा फिर से रॉकेट हमलों का अड्डा न बने।
- क्षेत्रीय शक्तियों की भूमिका: ईरान, कतर, तुर्की और मिस्र जैसे देश अपने-अपने हितों के साथ इस प्रक्रिया को प्रभावित कर सकते हैं।
- फिलिस्तीनी आंतरिक विभाजन: हमास और फतह के बीच गहरी खाई किसी भी व्यापक फिलिस्तीनी समाधान को जटिल बनाती है।
इन सबके बीच विश्वास निर्माण सबसे कठिन चुनौती है — क्योंकि दोनों पक्षों के लिए “सुरक्षा” और “अधिकार” की परिभाषा एक-दूसरे के बिल्कुल विपरीत है।
4. अमेरिका की मध्यस्थता: अवसर या प्रचार?
राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने इस समझौते को अपनी कूटनीतिक उपलब्धि के रूप में प्रस्तुत किया है।
यह वही ट्रम्प हैं जिन्होंने 2018 में अमेरिकी दूतावास को यरुशलम में स्थानांतरित कर, फिलिस्तीनियों के बीच गहरा अविश्वास पैदा किया था।
अब वही नेता खुद को “शांति निर्माता” के रूप में स्थापित करना चाहते हैं।
इस पहल का एक राजनीतिक आयाम भी है —
अमेरिकी चुनावी राजनीति में मध्य पूर्व में “सफल मध्यस्थता” ट्रम्प की विदेश नीति को वैधता प्रदान कर सकती है।
हालांकि, केवल अमेरिकी मध्यस्थता पर निर्भर रहना जोखिम भरा है। शांति प्रक्रिया तभी टिकेगी जब संयुक्त राष्ट्र, यूरोपीय संघ, और क्षेत्रीय अरब राष्ट्र भी सक्रिय सहयोग दें।
5. गाजा का मानवीय संकट: पुनर्निर्माण की चुनौती
गाजा आज भी मानवता की सबसे बड़ी त्रासदी का प्रतीक है।
संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, पिछले दो वर्षों में लाखों लोग विस्थापित हुए, स्कूल और अस्पताल मलबे में बदल गए, और 70% आबादी को पर्याप्त भोजन और पानी तक नहीं मिल रहा।
ऐसे में किसी भी शांति प्रक्रिया की सफलता तभी संभव है जब पुनर्निर्माण और राहत उसकी प्राथमिकता हो।
मिस्र और जॉर्डन ने पहले ही गाजा पुनर्वास के लिए विशेष फंड बनाने की घोषणा की है।
भारत ने भी मानवीय सहायता भेजने का वादा किया है — यह भारत की “वसुधैव कुटुम्बकम्” नीति के अनुरूप है, जो मानवता के हित को राजनीति से ऊपर रखती है।
6. स्थायी समाधान का मार्ग: दो-राष्ट्र सिद्धांत की पुनर्वापसी
इजरायल-फिलिस्तीन संघर्ष का स्थायी समाधान केवल एक व्यापक राजनीतिक संवाद से ही संभव है।
इस संवाद के केंद्र में “दो-राष्ट्र समाधान” (Two-State Solution) होना चाहिए —
जहां इजरायल की सुरक्षा की गारंटी और फिलिस्तीन की स्वतंत्रता व गरिमा, दोनों एक साथ सुनिश्चित की जाएं।
संयुक्त राष्ट्र का 1947 का विभाजन प्रस्ताव, 1967 की सीमाएं और 2002 का अरब शांति प्रस्ताव — सभी इसी दिशा में संकेत देते हैं।
लेकिन इसके लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति और आपसी सम्मान अनिवार्य है।
जब तक इजरायल गाजा और वेस्ट बैंक में बस्तियों के विस्तार को नहीं रोकता, और जब तक हमास हिंसा का त्याग नहीं करता — तब तक स्थायी शांति एक मृगतृष्णा बनी रहेगी।
7. निष्कर्ष: उम्मीद की किरण, पर लंबी राह बाकी
यह समझौता निश्चित रूप से एक उम्मीद की किरण है —
क्योंकि हर युद्धविराम शांति की दिशा में पहला कदम होता है।
परंतु इसे स्थायी बनाने के लिए राजनीतिक ईमानदारी, कूटनीतिक समन्वय और मानवीय दृष्टिकोण आवश्यक है।
इजरायल और फिलिस्तीन दोनों के पास आज एक अवसर है —
एक ऐसा अवसर जो न केवल युद्ध की समाप्ति बल्कि सह-अस्तित्व की शुरुआत का प्रतीक बन सकता है।
अंतरराष्ट्रीय समुदाय को चाहिए कि वह इस शांति प्रक्रिया को केवल "राजनीतिक समझौता" नहीं, बल्कि मानवता की पुकार के रूप में देखे।
अंततः, स्थायी शांति केवल तब संभव है जब गाजा और तेल अवीव के बच्चे एक-दूसरे को दुश्मन नहीं, पड़ोसी के रूप में देखें। यही वह क्षण होगा जब यह समझौता क्षणिक राहत नहीं, बल्कि इतिहास की स्थायी विजय कहलाएगा।
With Washington Post Inputs
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